एक मायूं आवे बाबो दोय में समावे,
चढ़ग्यो भजन शिखरगढ़ में ।।टेर।।
उगम गोखड़ा पर अमृत बन्टे,
मूरख जहर किया उन में।
जहर जरिया संत मरजीवा,
उकलग्या अदर बम्ब में।।1।।
दखण गोखड़ा पर दीपक जळे,
दरपण पलट देख उन में।
हीरा बरणी कसन सरूपी,
जागी जोत गगन घर में।।2।।
पछम गोखड़ा में नंगार खाना,
बाजा अन्त बाजे उन में।
ढोल नंगारा नोबत बाजे,
झालर ताल सुणी सुन्न में।।3।।
उत्तर गोखड़ा में पहरा जो पलटे,
धम्म घड़ी पुल बन्दी उन में।
बास सुगन्धा परमल आवे,
झण्डा पांच उड़े उन में।।4।।
गोखड़ा का बीच माये कैलाश दरसे,
महादेव दरसे मन्दर में।
जरेली जरे जठे अमृत बरसे,
वो ही जल चढ़े शिवशंकर के।।5।।
खेचरी बूचरी चाचरी माया,
उनमुन चढ़गी अगोचर में।
त्रिकुटी का खण्ड चढ़ भृकुटी में,
आया दरसण करले दसवां में।।6।।
महल त्रबीणी अणी आगे देखो,
जीणा रूप नजर के में।
लगनी के लारे लारे दूरदसा लाग्या,
बालो हिन्दे ब्रह्मण्ड में।।7।।
रूप है जो अरूप है जो माया,
रूप अरूप केबा का नाय।
हाले नहीं होठ कण्ठ नहीं जेले,
काना मात अखर में नाय।।8।।
करोड़ की जोड़ मेटी ही बताया,
एक अखण्ड पद चौथा में।
गुजर गरीबो ‘कनीरामजी’ बोले,
धन बलिहारी मारा सतगुरां ने।।9।।
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