भरोसो
भगवान को रे साधू,
संत
सुधारण काज।।टेर।।
प्रथम
धरे अवतार,
शेषनारायण
केवावे।
चवदा
लोक सिर धार,
रचना
प्रभु आप रचावे।।1।।
मच्छ
रूप अवतार ले,
जल
ऊपर आधार।
किरत
कहां लग वर्णन करू जी,
प्रयाग
पोठे करतार।।2।।
कूरम
धरे अवतार,
पीठ
पर गिरवर धारे।
उदधि
कियो जी मंथन,
रतन
चवदा ले निकाले।।3।।
देव
दानव युद्ध,
रच्यो
मोहिनी रूप संवार।
देवन
को अमृत दियो जी,
असुरन
को मद पार।।4।।
रूप
वराह अवतार धार,
पाताल
सिधाये।
हरणायक
हरवे बैठ,
कोरम
पर सेण बणाये।।
एक
महायुद्ध कियो,
एक
पृथ्वी आधार।
वेद
लिये ब्रह्मा को दिये जी,
हरणायक
ने मार।।3।।
नरसिंह
रूप अवतार,
खम्भ
को फोड़ प्रकाशे।
जन
अपना के काज,
असुर
को आय गरासे।।
पत
राखी प्रहलाद की,
भगवत
भीढू भगवान।
हरणाकुश
को मार के रे,
निरभय
कियो नादान।।4।।
बावन
हो अवतार जाय हरि,
बलि
ने जांचे।
तीन
कदम तिहूं लोक,
राय
बचनां के सांचे।।
सत
नहीं हार्यो,
देखियो
हरि कहे सुण राय।
तुम
कहो सो मैं करू जी,
द्वारे
बसयो जाय।।5।।
परसुराम
अवतार,
राज
ब्राह्मण को दीनो।
परसु
पर कर धार,
क्षत्रिय
ना क्षत्री कीनो।।
थरपण
कियो महायुद्ध,
कर
तेज रूप तप धार।
जमदग्नी
घर जन्म लियो जी,
ऋषि
रूप अवतार।।6।।
दशरथ
घर अवतार,
राम
लछमण बन सेवा।
रावण
राक्षस जाय,
जानकी
हरण करेवा।।
सुग्रीव
हनुमान को,
संग
लिये रघुनाथ।
मारे
रावण अंध को जी,
भक्त
अभेद कर जात।।7।।
मथुरा
में महाराज,
देवकी
गरभ अवतारा।
कंस
कियो नर वंश,
जमना
तट रास सवारा।।
भार
उतारण भोम को,
भगत
उबारण भेव।
असुर
सकल खण्डन किये जी,
संग
लिये बलदेव।।8।।
जगनाथ
अवतार,
बुद्ध
नारायण होई।
गर्व
निवारण हार,
भक्त
कुल तारण सोई।।
सांचे
धार समरण करो,
दास
तणा प्रतपाल।
परमेश्वर
पूरण हार है जी,
निश्चय
नेचो जाल।।9।।
कलजुग
में बुद्ध निकलंक,
विष्णु
ले अवतारा।
सतजुग
सत बरताय,
असुर
कालिगो मारा।।
जुग
जुग तारण भगत को,
भगत
रूप हरि एक।
जो
कोई भगती करे जी,
पावे
रूप अवलेक।।10।।
दस
लीला अवतार,
रूप
चोइस बताये।
अलख
लखे नहीं जाय,
अविगत
पार न पावे।।
शारद
नारद थक रहे,
शेष
न पावे पार।
नरहरि
का रूप को जी,
कौन
बरण आकार।।11।।
यह
लीला अवतार नार नर,
सीख
अर गावे।
सुणिया
प्राश्चित जाय,
हरि
को दास कुवावे।।
डूंगर
गर सत जानिये,
चित
हरि चरणा लाय।
भय
भंजन भगवान है जी,
भव
जल पार लगाय।।12।।
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