पहली थरपना प्रहलादजी कीदी,
कोप कियो हरणाकुश राय।
खम्भ फाड़ धणी दरसण दीदा,
नरसिंह रूप धर्यो अवतार।।1।।
भगता की भार सुणो धनी रामा,
न सुनो माता मैना दे की आण।
न सुणो अजमाल जी की आण,
आलस मोड उठो धनी रामा।।टेर।।
राजा हरिचंद राणी तारादे,
कंचन महल किया कुरबान।
नीच मोयला में नीर भरिया,
ने छोड़ी सतड़ा की बाण।।2।।
पांचू पांडू माता कुन्ता,
सतवंती दरोपद नार।
आम्बा बेल्या आरोधे आया,
भून्योड़ो आम लग्यो छिन मांय।।3।।
राजा बलि ने गणो डरायो,
बावन रूप धर्यो अवतार।
नाथ द्वारे चरण चापिया,
बीज थरपना बलि के द्वार।।4।।
आगे आता ढील नहीं करता,
ज्यो आती बछड़ा पर गाय।
भगता की भार हेर कर लेता,
जा मिलता दरगा के मांय।।5।।
ईसरदास मल्या गुरु पूरा,
वे दीदी माने सिमरण हाथ।
बगसोजी भणे आपको नेमी,
जुगां जुगां से लागा लार।।6।।
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