ऊंच नीच कुल कोई नहीं कारण unch neech kul koi nahi karan sadhu hoy


ऊंच नीच कुल कोई नहीं कारण,

साधु होय सिभरे एक धारण,

तूं ही उद्धारण।।टेर।।


शब्‍द गुरू रा सन्‍त खोज्‍या ज्‍यांही,

बोलत ब्र‍ह्म डीलता कांही।

सास उसास सिमर्यो सांई,

आण विचार ओलखो मांही।।१।।


रवि शशि सेति संत ताली लावे,

सुखमण सेरी होय धट पावे।

अर्द्ध उर्द्ध घट सेज समावे,

ब्रह्म होय ब्रह्म कूं पावे।।२।।


हो सिरजणहारा गुरू अगम अपारा,

पांच तीन का किया पसारा।

हो करतार एक अचरज थारा,

सामिल रूम रूम सूं न्‍यारा।।३।।


रूप वरण बिन सत् शब्‍द दीठा,

जिन चाख्‍या ज्‍यांने लागा मीठा।

समझ उजाले सेती सोजे दीठा,

गया मेल कर्म का कीठा।।४।।


राम रमता जांकी सकल समरथा,

जढ़ चेतन में छिपियो नही छता।

कह ''माली लिखमो'' सन्‍त पाय पहुंचा,

रिज राम रहता सूं रता।।५।।

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