सो साहेब किम बिसरूं विश्‍वास संभावो निज भज नर so sahab kim bisaru viswas sambhavo



सो साहेब किम बिसरूं,

विश्‍वास संभावो निज भज नर,

दिन जायरे हरसूं लिव लावो ।।टेर।।


जिण कुदरत से काया किन्‍‍हीए

जांकी सफत सरावो।

रूप वर्ण वश द्वार कर,

नख चख डाेरज ठावो।।1।।


जग हटवाड़ो,

जाण ने गुरू गम समावो।

गुरू का शब्‍द विचारने,

तनका तिंवर मिटावों।।2।।


जांया से सब जावसी,

थिर नाम सम्‍भावो।

चौकी है दिन चार की,

लावो लोक ठगावो।।3।।


माया में मेहनत थगी,

लागो लोभ रो लावो।

जनम गमायो जोहतां,

ज्‍यांने ठोडन ठावो।।4।।


प्राणी प्रतेक दीसे पावणो,

मिजमान कहावो।

आदु घट निज नाम रा,

जीव कूं ज्‍यां ठावो।।5।।


समझ शब्‍द मिल प्र‍ाणियांं,

प्राणी पुरूष कूं ध्‍यावो।

तन मन पर्चे परस लाे,

समदृष्टि होयां पावो ।।6।।


कुल कारण नही भक्‍तन,

न करे कोई दावो।

लागी ''लिखमा'' लगन में ध्‍यावो,

ज्‍यूं ही पावो।।7।।

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