समझ मन सपना है भाई सपना,
हरि बिना कौन हिमायति अपना।।टेर।।
अपना अपना कहत कुटम्बा,
जीवत रा के जतना।
अंत काल कुल कोई नहीं तेरा,
जम मारेला ठीना।।1।।
दीन्हां ज्यांका देख तमासा,
खर्चत अगली खटना।
होसी हर्ख लिख्या सो मश्तक,
अन्तकाल है खपना।।2।।
सुकृत कियो न साहिब सिमर्यो,
ओसर चूक्यो इतना।
हार्यो जन्म चाल्या चोरासी,
लोभी आपरे लखना।।3।।
धर विश्वास पास पिव तेरे।
रहता सूं रत जपना।
जपतां जोर लागे नहीं जम का,
अलख रहे वांको लखना।।4।।
राव रंंक जायेगा सब ही,
बारी अपनी अपना।
''लिखमा'' ध्याय धणी ने मत करे धोखा,
देख आप में अपना।।5।।
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