साधो भाई सन्त जुगा जग तरिया,
झूठा लापड़ कलजुग टलिया,
चार जुगा में नहीं मिलिया।।टेर।।
भाव भक्ति री क्रिया नहीं जाणे,
फोगट फेरे फिरिया।
बिना पाल ऐ सरवर भरीयो,
कई डूब्यां कई तरिया।।1।।
आप स्वार्थ इद कारवडिया,
पर निन्दरा पर दिया।
आप धणो धर ताला जुड्या,
नदी नाल ज्यूं अडिया।।2।।
दे मन मेले ले मन खोटे,
ज्यारा फल नहीं फलिया।
कण कूं कस राखिया कोयला,
काल जाल ज्युं जलिया।।3।।
मिठा लीन्हा खारामी लीन्हां,
कड़वा देख खड़ बडिया।
उंचा चढ़े ज्यांके अंत आंखड़े,
गेड़ा गगन से गुडि़या।।4।।
साधु सदा गुरू के सन्मुख,
सील वचन में सलीया।
दोय कर जोड़ लखे माली ''लिखमा'',
सुर तेतिसां में रलिया।।5।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें