मिनख जनम सो मौसर मंडियो क्‍यू minakh janam so mosar mandiyo kyu ek simaran



मिनख जनम सो मौसर मंडियो क्‍यू,

एक सिमरन एक साजीजे।।टेर।।


कजलुग वह किराडे लागो,

ज्‍यामे कर्णी को न्‍याव करीजे।

खेवण हार खावंद मांही जोवो,

ज्‍यासूं जोय जाण पार लंगीजे।।1।।


भव सागर तो भर्म सूं भरियो,

जामें शब्‍द विचार बहिजे।

समझ शब्‍द रा कर उजियाला,

तन रा तिमर मिटीजे।।211


दिल दरयाव दया कर बेड़ी,

सत् सुकृत कर साथ तारीजे।

इण विध संत अनेक उधारिया,

कर भाव भक्ति भेदीजे।।3।।


भेट गमान गरीबी झालो,

हरि तो गरीब निवाज कहीजे।

झाल गरीबी मिटे जम झगड़ा,

सुख सागर में रहिजे।।4।।


नव अवतार सेसनाम स्‍वामी,

खट दर्सण खोबीजे।

बोलत ब्रह्म तिहुं लोक त्रिभण,

जप भक्ति मुक्ति फल लीजे।।5।।


सिद्धि ऋषि मुनी सिद्धि साधक,

सिमरण सूं ज्‍यारी कीरत कथन सुणीजे।

सुण कीरत लिव लावो ''लिखमा'',

साधा रो शरण रहीजे।।6।।

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