हो अजमाल सुत सांचो धणी,
श्री द्वारका रो नाथ, सदा सोरा राखसी।
राखसी सिर हाथ बाबो, शरणे सोरा राखसी ।।टेर।।
शारद आई भाय म्हाने,
गमन्दो गुणेश जी।
धणी ध्याउं रामदे,
गुरू रे उपदेश जी ।।१।।
कंवर जी री कला बरते
झड़े पैला पापजी ।
छतीस पावन परसिया,
आवे थारी जात जी ।।२।।
धजाधारी जात थारी,
भूप आवे पांयजी ।
सिवरिया समरथ बाबो,
सांकड़ा में सांयजी ।।३।।
पीर थारी सेव लागा भरम भागा,
तिमर मेटिया तनरा ।
अलख जी अवतार धारयो,
फनद मेटे करम रा ।।४।।
पीर थारी ओटे आयाेे,
अणदवर्त्या जुगत तो झाजीलई ।
जोया ज्युं जीव रो ठाकर,
मुगति रो दाता सही ।।५।।
कीरत गाई पदवी पाई,
महर तो महाराज री ।
प्रताप पायो पहले को,
छाप लिवि सिर आपकी ।।६।।
कलारी कीरत गाई,
पावियो विश्राम।
सिवर लिखमा स्याम
सरमंग बोलता सोही राम ।।७।।
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