हरि सूं समझ सू लिव ल्‍याई hari su samaj su liv laai duniya dekhat



हरि सूं समझ सू लिव ल्‍याई,
दुनिया देखत भूल बनाई।।टेर।।


मात पिता कामण सुत सागे,

मोह माया लिपटाई।

मकड़ी जाल मांड मांही उलज्‍यो,

फिरे आपदा मांही।।1।।


हरि की भक्ति जगत नहीं जाणे,

करे आपदा कांई।

हर्ख शोक सूं सोही बाधा,

बुद्ध बिन देख चूके डाई।।2।।


संकट पड़े सुद्ध बुद्ध सब बिसरे,

हरि भज हम की डाई।

आवे आयजूरा जम घेरे,

कारी लगे न कांई।।3।।


''लिखमो'' सोवे निकमा जग अंधा,

भजन बिहुणा भाई।

हरि ने भजे सरे सब कारज,

सायब करे सहाई।।4।।


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