है हरदम दीदार देखा तेरी,
देहि बिच दाता जोयले।।टेर।।
मन मस्तान मान मत भूले,
भरम बन्ध्यो कांई डोले।
श्वास श्वास सब घट है साहिब,
सो भज निरभय होवले।।१।।
तिमर मिटाया लायमन ताली,
मगन लगन बिज लोईले।
हे हरि हृदय कण्ठ निरख नाशका,
सो सुखमण णर बोले।।२।।
साहिब जागे सब जुग सोवे,
सो काम डिगे न डोले।
नेण बेण बिच परख गिया कू,
सूूरत श्याम घर पोयले।।३।।
दरसे जब परसण होय परसे,
कर तन मन इक तोले।
ले गुरू ज्ञान ज्ञान में गुरू है,
समझ शब्द बिच जोयले।।४।।
मन नहीं माने जबलग नहीं जान्या,
राम हुतो भ्रम ओले।
कह ''लिखमा'' लाभेे सो बड़भागी,
पीया प्रेम के झोले।।५।।
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