भव सागर में भूलो रे अन्‍धा bhav sagar me bhulo re andha koi karne te



भव सागर में भूलो रे अन्‍धा,
कोई कारणे ते देह धरी।
भूलो नाम भर्म में उरज्‍यो,
ओ कांई पहरयो केवारी।।टेर।।


मानखो अर्ज करे हरि आगे,
अब तो मेलो संसारी।
धर्म करूं भजन नहीं भूलूं,
सिमरण करस्‍यो इकथारी।।1।।

उदर आया उन्‍दा लटके,
बाहर काढ़ो गिरधारी।
मृत्‍यु लोक में थाल बाजियो,
तीन नाम ले तत्‍सारी।।2।।

पांच सात रम खेल गुजार्या,
तुरेर तार हूवो त्‍यारी।
पांच पचीस री सलाह सीखकर,
करी हाकमी राजा री।।3।।

 
हुं में हरख्‍यो मैं में सिरख्‍यो,
भजन भूल गयो बन्‍दारी।
मारे मिनख माया रे कारणे,
आंधा धुन अंधारी।।4।।

वादो आयो मांदो पड़सी,
ताता नीर हुया त्‍यारी।
जमदूत सायब रे घर रा,
सुग्‍दर मार पड़े भारी।।5।।

धर्म राजजी लेखा मांगे,
काम किया ते अन्‍त भारी।
उन्‍दो टेर मंमाई पाडो,
हुक्‍म हुयो है दरबारी।।6।।

ममता मारे जीवांरे मारे,
उंधा लटके अहंकारी।
कह ''लिखमो'' संता रे सरणे,
सुर्त राख इकपासारी ।।7।।

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